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रानी रुदाबाई: शौर्य, बलिदान और स्वाभिमान की अद्वितीय गाथा

रानी रुदाबाई: शौर्य, बलिदान और स्वाभिमान की अद्वितीय गाथा भारतीय इतिहास वीरांगनाओं के साहसिक संघर्षों से भरा पड़ा है, और उन्हीं में से एक थीं रानी रुदाबाई। उन्होंने न केवल अपने राज्य और सम्मान की रक्षा के लिए युद्ध किया, बल्कि एक ऐसी मिसाल पेश की जो आज भी महिलाओं के आत्मसम्मान और स्वाभिमान का प्रतीक बनी हुई है। पाटन और कर्णावती: एक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पाटन और कर्णावती (आज का अहमदाबाद) दो छोटे मगर सशक्त साम्राज्य थे, जिन पर राणा वीर सिंह वाघेला राज करते थे। रानी रुदाबाई, जो सौंदर्य और शौर्य का अनुपम संगम थीं, अपने पति के साथ राजकीय कार्यों में बराबर की भागीदार थीं। उनका सौंदर्य और पराक्रम दूर-दूर तक प्रसिद्ध था, और यही कारण था कि मलेच्छ आक्रमणकारी सुल्तान महमूद बेघड़ा की दृष्टि उन पर जा टिकी। महमूद बेघड़ा का षड्यंत्र और युद्ध की शुरुआत 1498 ईस्वी (संवत 1555) में सुल्तान महमूद बेघड़ा ने अपनी चार लाख की विशाल सेना के साथ पाटन पर हमला कर दिया। राणा वीर सिंह की सेना मात्र 2600 से 2800 सैनिकों की थी, लेकिन उनकी रणनीति इतनी कुशल थी कि उन्होंने पहली दो लड़ाइयों में सुल्तान की सेना को बुरी तरह प...