रानी रूदा... एक प्रचण्ड प्रहार
भारतीय इतिहास के पाटन और कर्णावती दो छोटे साम्राज्य थे, जहाँ राणा वीर सिंह राज करते थे.. राणा वीर सिंह के अर्धांगिनी रूप में रुदा बाई के नाम से भी जाना जाता था, जो उनके राजकार्य में उनकी सहायक बनी थीं.. .रूपबा की सौंदर्य कीर्ति आसपास के राज्य में संग्रहालय थी, शेष रिपब्लिकन मलेचो के सुल्तान तक पहुंच गई थी...
मूलतः अपनी आसुरी वृत्ति के वशीभूत रहने वाले जिहादी खोज के साथ आक्रमणकारी ने पाटन पर ढावा बोल दिया..
प्राचीन भारतीय संस्कृति में नारी के मन के प्राण लेने के लिए उनके साम्हने के अनुसार राणा वीर सिंह वाघेला ढाल बन कर दिए गए। ,बेघरा को बुरी तरह परजाय की चोट खानी पड़ी
राणा वीर सिंह वाघेला की फ़ौज छब्बीस सौ से अथाइस सौ की तादात में थी क्योंकि कर्णावती और पाटन बहुत ही छोटे छोटे दो राज्य थे। इनमें से अधिकांश फ़ौज की आवश्यकता समान नहीं थी। राणा जी की रणनीति ने चार लाख जेहादी लुटेरों की फौज को बर्बाद कर दिया था।
इतिहास गवाह है कि कुछ हमारे ही भेद ऐसे के हुए थे, जो दुश्मनों से बार-बार मिल जाते थे, कुछ लाल और लोभ में, इसी तरह दूसरे युद्ध में राणा जी के साथ रहने वाले, मित्र साहूकार ने राणा वीर सिंह को धोखा दिया था ।। बहुसंख्यक साहूकार जा ने सुल्तान बेघारा से और साड़ी गुप्त जानकारी उन्हें प्रदान कर दी, जिस जानकारी से राणा वीर सिंह को परास्त कर रानी रुदाबाई और पाटण की गद्दी को बुलाया जा सकता था। सुल्तान बेघारा ने धन दौलत लूटने की योजना राणा वीरसिंह वाघेला के साथ मिलकर बनाई।
सुल्तान बेघारा ने कहा कि अगर युद्ध में जीत गए तो जो मांगोगे सोना, तब साहूकार की नजर राणा वाघेला की थी और सुल्तान बेघारा की नजर रानी रुदाबाई को अपने हरम में रखने की और पाटन राज्य की राजगद्दी पर आसीन राज करने की था।
सन् 1498 ईसवीं (संवत् 1555) दो बार युद्ध होने के बाद परास्त के सुल्तान बेघारा ने तीसरी बार दुगनी सैन्यबल के साथ मिलकर जानकारी प्राप्त की, राणा वीर सिंह की सेना ने अपने से दुगनी सैन्यबल को भी रणभूमि में देखा। जब राणा जी सुल्तान बेघारा की सेना में शामिल होकर आगे बढ़े थे, तब उनके मित्र डी शेयरधारक ने युद्ध में पीछे से युद्ध किया था, जिससे राणा जी की रणभूमि में मृत्यु हो गई थी। गया ।
रानी रूदाबाई ने महल के ऊपर छावनी बनवाई
सुल्तान बेघरा की रानी रुदाबाई ने अपने सपनों का शिकार बनवाया, राणा जी के महल की ओर दस हजार से अधिक स्मारक लेकर पंहुचा, रानी रुदाबाई के पास शाह ने दूत के माध्यम से विध्वंस प्रस्ताव, रानी रुदाबाई ने महल के ऊपर बनी छावनी की स्थापना की थी धनुर्धारी वीरांगनाये थी, जो रानी रुदा सौबाई के संकेत स्थल पे ही आश्रम का संरक्षण करने के लिए तत्पर थी...
रानी रुदाबाई न केवल सौंदर्य की धनी थीं, बल्कि शौर्य और बुद्धि की भी धनी थीं, उन्होंने सुल्तान बेघारा को महल के दरवाजे के स्थान पर आने के लिए कहा, सुल्तान बेघारा रानी को लाल अंधेरी दृष्टि में वही रूप मिला जैसा रुदाबाई ने कहा था, और रुदाबाई ने समय न गंवाते हुए सुल्तान बेघारा की छाती में खंजर उतार दिया और किनारों पर तीरों की वर्षा होती रही, जिससे शाह का स्मारक बचकर वापस नहीं जा पाया...
रानी रूदा बाई का क्रोध इतने पे शांत नहीं हुआ, उन्होंने सुल्तान के शरीर से उनके शीश पाटन की सीमा पर फाँसी दी और सुल्तान के वक्ष को चीर कर उनके विचारों से सराबोर हृदय कर्णावती नगर के मध्य फाँक कर यह चेतावनी दी यदि कोई विधर्मी भारतीय सीमा या हिंदू नारी की ओर कुदृष्टि संपादक का विचार भी मन में लाता है तो किस दुर्गति को प्राप्त किया जाएगा...
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