निर्भीकता की परिभाषा : रानी अब्बका
निर्भीकता की परिभाषा: वीर रानी अब्बक्का
भारत की वीरांगनाओं में एक ऐसा नाम, जो इतिहास के पन्नों में स्वर्णाक्षरों में अंकित है—रानी अब्बक्का चौटा। एक ऐसी योद्धा जिन्होंने पुर्तगालियों के साम्राज्यवादी मंसूबों को ध्वस्त कर दिया और दक्षिण भारत के समुद्री तटों की रक्षा के लिए अपने जीवन का बलिदान दे दिया। उन्हें 'अभया रानी' यानी निर्भया रानी भी कहा जाता था, क्योंकि वे निडरता और पराक्रम की प्रतिमूर्ति थीं।
जन्म और मातृवंशीय परंपरा
रानी अब्बक्का का जन्म उल्लाल के चौटा राजघराने में हुआ था। चौटा राजवंश मातृवंशीय परंपरा का पालन करता था, जहाँ सत्ता का हस्तांतरण पुत्रों की बजाय पुत्रियों को किया जाता था। इसी परंपरा के अनुसार, उनके मामा तिरुमला राय ने उन्हें उल्लाल की रानी के रूप में स्थापित किया।
रानी अब्बक्का को बचपन से ही युद्ध और प्रशासन की शिक्षा दी गई थी। वे घुड़सवारी, तलवारबाजी, तीरंदाजी और कूटनीति में निपुण थीं। उनके शासन में हिंदू, जैन और सभी समुदायों को समान रूप से स्थान मिला। उनकी सेना में विभिन्न जाति और धर्मों के लोग शामिल थे, जिससे उनकी न्यायप्रियता और कुशल शासन का परिचय मिलता है।
पुर्तगालियों का विरोध और युद्ध कौशल
16वीं शताब्दी में जब पुर्तगाली भारत के विभिन्न क्षेत्रों पर अपना नियंत्रण स्थापित कर रहे थे, उन्होंने दक्षिण भारत के तटीय इलाकों पर भी नजर गड़ा रखी थी। 1525 में, उन्होंने दक्षिण कन्नड़ के तट पर हमला किया और मंगलुरु के बंदरगाह को अपने कब्जे में ले लिया, लेकिन वे उल्लाल पर अपना अधिपत्य नहीं जमा सके।
रानी अब्बक्का को जबरदस्ती कर देने के लिए मजबूर करने की कोशिश की गई, लेकिन उन्होंने यह मांग ठुकरा दी। उन्होंने शांति बनाए रखने का प्रयास किया, लेकिन 1555 में, पुर्तगालियों ने उल्लाल पर हमला कर दिया। रानी अब्बक्का ने अपने सैन्य कौशल का परिचय देते हुए पुर्तगालियों को करारी शिकस्त दी।
रानी अब्बक्का चौटा का प्रभाव और योगदान
- भारत की पहली महिला स्वतंत्रता सेनानी:
अब्बक्का चौटा पहली भारतीय महिला थीं, जिन्होंने औपनिवेशिक ताकतों (पुर्तगालियों) के खिलाफ संघर्ष किया और विदेशी शासन को चुनौती दी।
- सामाजिक समरसता की प्रतीक
उन्होंने हिंदू-मुस्लिम सैनिकों को एक साथ संगठित किया और भारत में धार्मिक एकता का उदाहरण पेश किया।
- गुरिल्ला युद्ध की विशेषज्ञ:
उनकी छापामार युद्ध नीति बाद में कई स्वतंत्रता सेनानियों, जैसे रानी लक्ष्मीबाई और झाँसी की सेना, के लिए प्रेरणा बनी।
रानी अब्बक्का चौटा की विरासत
आज भी कर्नाटक में रानी अब्बक्का चौटा की वीरता को याद किया जाता है।
- रानी अब्बक्का उत्सव:
हर साल कर्नाटक में "रानी अब्बक्का उत्सव" मनाया जाता है, जिसमें उनकी बहादुरी और संघर्ष को सम्मान दिया जाता है।
- डाक टिकट और मूर्तियाँ:
भारतीय डाक विभाग ने 1990 में उनके सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया। साथ ही, उल्लाल और मंगलुरु में उनकी मूर्तियाँ स्थापित की गई हैं।
- महिला सशक्तिकरण की प्रेरणा:
उनकी कहानी भारत की महिलाओं के लिए प्रेरणादायक है, जो संघर्ष और दृढ़ निश्चय से अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकती हैं।
रणभूमि में साक्षात् 'रणचंडी'
1568 में पुर्तगालियों ने एक बार फिर उल्लाल पर आक्रमण किया और इस बार किले पर कब्जा कर लिया। लेकिन रानी अब्बक्का ने हार नहीं मानी। वे किसी तरह शत्रुओं के चंगुल से बच निकलीं और एक मस्जिद में शरण ली। उसी रात, उन्होंने लगभग 200 सैनिकों को एकत्र किया और पुर्तगालियों के शिविर पर घातक हमला किया। इस युद्ध में पुर्तगाली जनरल मारा गया, कई सैनिक बंदी बना लिए गए और शेष सेना पीछे हट गई।
इस विजय के बाद रानी अब्बक्का ने मंगलुरु का किला पुर्तगालियों से मुक्त करा लिया। लेकिन 1569 में, पुर्तगालियों ने फिर से हमला कर मंगलुरु और कुंडपुरा पर कब्जा कर लिया।
धोखे की साजिश और अंतिम विद्रोह
रानी अब्बक्का के पति लक्ष्मप्पा ने निजी प्रतिशोध के कारण पुर्तगालियों का साथ दिया। उन्होंने अपनी सेना के साथ उल्लाल पर हमला किया और रानी अब्बक्का को बंदी बना लिया गया।
लेकिन रानी अब्बक्का ने जेल में रहते हुए भी विद्रोह कर दिया। वे बंदीगृह में रहते हुए भी पुर्तगालियों के खिलाफ षड्यंत्र रचती रहीं। अंततः, उन्हें बंदी अवस्था में ही वीरगति प्राप्त हुई।
रानी अब्बक्का की अमर गाथा
आज भी, 'वीर रानी अब्बक्का उत्सव' के रूप में उनका स्मरण किया जाता है। इस अवसर पर, समाज की प्रतिष्ठित महिलाओं को 'वीर रानी अब्बक्का पुरस्कार' से सम्मानित किया जाता है।
रानी अब्बक्का केवल एक योद्धा नहीं थीं, वे नारी शक्ति, स्वतंत्रता और आत्मसम्मान की प्रतीक थीं। उनका संघर्ष हमें यह सिखाता है कि सच्ची वीरता शस्त्रों से नहीं, बल्कि अपने आत्मबल और कर्तव्यपरायणता से आती है।
रानी अब्बक्का चौटा न केवल दक्षिण भारत की बल्कि पूरे देश की महानतम योद्धाओं में से एक थीं। उन्होंने अपनी मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की आहुति दी और औपनिवेशिक शासन के खिलाफ एक क्रांतिकारी संघर्ष का नेतृत्व किया।
उनकी वीरता हमें यह सिखाती है कि धैर्य, साहस और आत्मसम्मान के साथ कोई भी अत्याचारी ताकतों को हरा सकता है। उनका जीवन हर भारतीय, विशेष रूप से महिलाओं, के लिए प्रेरणा स्रोत बना रहेगा।
जब भी इतिहास में नारी शक्ति की बात होगी, रानी अब्बक्का का नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा।
"नारी मात्र अबला नहीं, रणचंडी भी है!"
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