Tuesday, March 5, 2024

निर्भीकता की परिभाषा रानी अब्बका...

 निर्भीकता की परिभाषा रानी अब्बका...



अब्बका का जन्म स्थान उल्लाल नामक नगर के चौटा राजघराने में हुआ था। चौटा राजवंश मातृवंशीय परंपरा का पालन किया गया

मातृवंशीय परंपरा एक नारी प्रधान समाजिक व्यवस्था थी, जिसके अनुसार किसी भी पद या नारी का स्थान या प्राथमिक प्रमुख होता था और संपत्ति और शासन का अधिकार पुत्रियों के स्थान पर पुत्रियों को दिया जाता था। 

इसी परंपरा के अनुसार अब्बका के मामा तिरुमला राय ने उन्हें उल्लाल नगर की रानी के पद पर स्थापित किया था।

 रानी अब्बका के युद्ध और शासन व्यवस्था में अचयनिता प्राप्त हुई थी...

अब्बका का पेज प्रेम वात्सल्य एवं न्याय प्रियता..

उनके शासन में जैन, हिंदू और मुस्लिम धर्म के लोग समान रूप से रहते थे। उनकी सेना में सभी धर्मों, संप्रदायों और समुदायों के लोग थे। लोककथाओं की कहानियाँ तो वे एक न्यायप्रिय रानी थीं और इसी कारण से वे उन्हें बहुत पसंद भी करती थीं। 


रानी अब्बका का रानी कौशल

ऐसा भी माना जाता है कि रानी अब्बक्का युद्ध में अग्निबाण का प्रयोग करने वाली अंतिम योद्धा थीं 

उनके अच्छे संस्करण और वीरता के कारण ही उन्हें 'अभया रानी' भी कहा जाता था.. अभया रानी अर्थात निर्भया रानी की पराकाष्ठा


पुर्तगालियों का विरोध मोर्चा

रानी अब्बक्का के मामा तिरुमला राय ने अपनी शादी मंगलुरु के बंगा रियासत के राजा लक्ष्मप्पा अरसा के साथ की थी, लेकिन शादी के कुछ समय बाद ही रानी अब्बक्का अपने पति से अलग हो गईं और छात्र उलाल आ गईं...

उनके खिलाफ कोई खतरा नहीं था कि आने वाले समय में पति लक्ष्मप्पा ने इस बात का बदला लेने के लिए अपनी लड़ाई में अपने पुर्तगालियों का साथ दिया था...

रानी अब्बक्का युद्ध में अग्निबाण का उपयोग करने वाली आखिरी जगह..


वर्ष 1525 में पुर्तगालियों ने दक्षिण कन्नड़ के तट पर आक्रमण किया और मंगलुरु के बंदरगाह को मजबूत किया.. लेकिन उल्लाल ने अपने अधिपति की स्थापना नहीं की..

 रानी अब्बक्का की नोक-झोंक से चिंतित पुर्तगालियों ने यह दबाव बनाने की कोशिश की कि रानी उन्हें कर चुकाए 

लेकिन रानी अब्बक्का ने शांति बहाल करने का प्रयास किया... बाद में वर्ष 1555 में पुर्तगालियों ने आक्रमण का प्रयास किया, रानी अब्बका ने उन्हें असफल करने का प्रयास किया...


समय का फेर


वर्ष 1568 में पुर्तगीज बहाली में उल्लाल पर आक्रमण करने की बात आई थी, लेकिन रानी अब्बक्का ने फिर से ज़ोरदार विरोध किया, इस बार उल्लाल सेना उल्लाल पर अधिकार करने में सफल रही और राज दरबारों में आक्रमण आई..

 रानी अब्बक्का वहां से बचकर निकलीं और शरण ली ने एक मस्जिद में प्रवेश किया, समुद्र तट पर साहस न करते हुए वीरता का परिचय दिया, उसी रात करीब 200 सेना इकट्ठी की रानी अब्बक्का ने पुर्तगालियों पर धावा दिया और उस में बोल युद्ध के जनरल को मारा गया गया,कैली सैनिक बंदी बनाये गये और कई सैनिक सैनिक युद्ध के लिए पीछे हट गये...

उनके बाद रानी अब्बक्का ने अपने साथियों के साथ मिलकर पुर्तगालियों को मंगलुरु का किला छोड़ कर बाउंड कर दिया..

 लेकिन वर्ष 1569 में पुर्तगालियों ने ना सिर्फ मंगलुरु का किला हासिल किया बल्कि कुंडपुरा पर भी अधिकार कर लिया। पुर्तगालियों के लिए बनी है इन अनोखी रानी अब्बक्का एक बड़ा खतरा..

इस दौरान रानी अब्बका के पति लक्ष्मप्पा ने पुर्तगालियों की सहायता के लिए और शक्तिशाली सेना उल्लाल पर फिर से आक्रमण करने के लिए अपना परिवर्तन लिया... लेकिन रानी अब्बका अब भी शहीद हो गईं।

 उन्होंने वर्ष 1570 में अहमदनगर के सुल्तान और कालीकट के राजा के साथ मिलकर पुर्तगालियों का विरोध किया।

अपने पति लक्ष्मप्पा की धोखेबाज़ रानी अब्बक्का से लड़ाई हार गईं और उन्हें बंदी बना लिया गया...

तथापि ऐसा कहा जाता है कि बंदी के बाद रानी अब्बाका ने भी विद्रोह कर दिया था - किले में वे अंतिम सांस ली थी...

वीर रानी अब्बक्का उत्सव

आज भी रानी अब्बक्का उत्सव की याद में उनके नगर में उल्लाल उत्सव मनाया जाता है और इस 'वीर रानी अब्बक्का उत्सव' में प्रतिष्ठित महिलाओं को 'वीर रानी अब्बक्का संरक्षण' पुरस्कार से नवाजा जाता है।

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