अकबर की अंतिम इच्छा: जब एक राजपूत वीरांगना ने बादशाह को घुटनों पर झुका दिया
अकबर की अंतिम इच्छा: जब एक राजपूत वीरांगना ने बादशाह को टोक दिया
इतिहास केवल राजा-महाराजाओं के विजय अभियानों और शाही दरबारों की चौखट से नहीं बनता, बल्कि इसमें वे गाथाएँ भी शामिल हैं जो वीरता, न्याय और आत्मसम्मान के नए प्रतिमान गढ़ती हैं। ऐसी ही एक गाथा है राजपूत वीरांगना किरण बाई सा और मुगल बादशाह अकबर की।
आइए कल्पना करें - यदि मृत्यु स्वयं अकबर से उसकी अंतिम इच्छा पूछती है, तो उसे उस रात क्या याद आया जब एक निडर राजपूत कन्या ने उसे जीवनदान दिया था? जब वह उस घड़ी को याद करती थी जब उसकी आत्मा, इच्छा और महल की छात्रा एक महिला के साहस के आगे हिल गई थी?
इतिहास का एक पक्ष: अकबर—एक न्यायप्रिय शासक?
हमारे इतिहास के दावे में अकबर को एक न्यायप्रिय, उदार और सर्वधर्म समभाव रखने वाला शासक बताया गया है। कहा जाता है कि उसने जजिया कर हटा दिया, हिंदुओं को अपने शासन में स्थान दिया और सभी धर्मों का सम्मान किया। लेकिन इतिहास के उन पन्नों में कुछ धुंधली सच्चाइयाँ भी हैं, जिन्हें या तो उपेक्षित कर दिया गया है या नष्ट कर दिया गया है। जिसमे अकबर के हरम के काले कारनामे और उसकी घृणित सच्चाई भी है |
सत्य का दूसरा पक्ष: अकबर का असली चेहरा
अकबर के शासन तंत्र को समझने के लिए हमें उसकी खुद की लिखी हुई "आईन-ए-अकबरी" को पढ़ना होगा। इस ग्रंथ में यह स्पष्ट रूप से दर्ज है कि अकबर ने जजिया कर वसूलने के लिए न केवल अत्याचार किया, बल्कि नरसंहार भी किया।
अकबर हवस और भोग विलासिता के लिए भी जाना जाता था। वह केवल युद्धों में ही नहीं, बल्कि अपने "नौरोजी मेले" के षडयंत्रों में भी विवादित कृत्यों के लिए कुख्यात था।
नौरोजी मेला: अकबर की कुटिल चाल
"नौरोजी मेला" या "मीना बाज़ार" - यह नाम एक उत्सव का आभास देता है, लेकिन इसके पीछे अकबर की निंदनीय चालें छिपी हुई थीं।
यह मेला विशेष रूप से महिलाओं के लिए आयोजित किया जाता था, जिसमें पुरुषों का प्रवेश वर्जित था। लेकिन स्वयं अकबर स्त्री वेष में घुसता और अपनी दासियों के माध्यम से किसी भी सुंदर स्त्री को अपने हरम तक लाने की योजना बनाता। इतिहास में यह कड़वी सच्चाई छुपी हुई है कि यह मेला केवल मुगल शासकों की विलासिता का केंद्र था, जहां कई नारियों की अस्मिता को कुचला गया।
जब नौरोजी मेले में गयी राजपूत वीरांगना किरण बाई सा
एक दिन यही मेला राजपूत वीरांगना किरण बाई सा के लिए एक युद्ध स्थल बन गया।
कौन थी किरण बाई सा?
वह कोई सामान्य महिला नहीं थी। वह प्रताप के छोटे भाई शक्ति सिंह की बेटी थी—एक ऐसी वीरांगना, जो बचपन से ही युद्धकला में निपुणता प्राप्त कर चुकी थी। वह इस मेले में आई थीं, लेकिन उनकी उपस्थिति ने अकबर के कुत्सित मन में एक विचित्र लालसा जगा दी। उसने अपनी दासियों को संकेत दिया कि किसी भी तरह किरण बाई सा को हरम तक लाया जाए।
अकबर का षड्यंत्र और किरण बाई सा का साहस
किरण बाई सा को एक साजिश के तहत हरम तक पहुंचाया गया। लेकिन शायद यह दुर्भाग्य अकबर का था, न कि किरण बाई सा का। जैसे ही अकबर ने अपने कुत्सित इरादों के साथ हाथ बढ़ाया, बिजली की तेजी से किरण बाई सा ने उसे ज़मीन पर पटक दिया। और अचानक पूरा दृश्य बदल गया।
जहाँ एक औरत को अबला समझकर हरम में लाया गया था, वहाँ अब एक दलित योद्धा का डंका बज रहा था—किरण बाई सा का कटार अकबर की गर्दन पर रखा हुआ था।
अकबर की याचना और किरण बाई सा का न्याय
अकबर, जो अपने जीवन में पहली बार खुद को बेबस महसूस कर रहा था, मितव्ययिता के साथ जीवन की भीख माँगने लगा।
"मुझे क्षमा कर दो! मुझे क्षमा कर दो!"
लेकिन क्षमा का अधिकार किसे था?
किरण बाई सा ने अकबर से कहा,
"आज मैं तुम्हें जीवनदान देती हूं, लेकिन याद रखना- अगर इस नौरोजी मेले का आयोजन फिर हुआ, तो अगली बार कटार तुम्हारे आर-पार होगी।" जो अब तक भारत के वीर महारानी को युद्ध में पराजित करने के लिए जाना जाता था, पहली बार उनके दरबार में ही हार हुई—अकबर एक राजपूत कन्या से!
नौरोजी मेले का अंत
उस दिन अकबर को समझ आया कि वह जिस महिला को अपनी वस्तु समझ रहा था, वह एक शेरनी थी। उसके बाद का इतिहास गवाह है—नौरोजी मेले का आयोजन कभी नहीं हुआ।
अकबर की अंतिम इच्छा?
आज अगर मौत अकबर से उसकी आखिरी इच्छा पूछे, तो शायद वह यही कहेगा, आज बस मुझे नारी के इस प्रकोप से बचा लो , मुझे पता ही नहीं था की आकर्षण का केंद्र बनने वाली नारी , आक्रामकता का बबन्डर भी बन सकती है नारी का यह स्वरूप मुझे दोबारा कभी ना देखना पड़े , नारी का ऐसा रूप जो मेरी अंतरात्मा तक को झकझोर दे |
लेकिन इतिहास में अकबर का नाम चाहे जैसे भी लिखा जाए, सच तो यही है कि राजपूत वीरांगना किरण बाई सा ने उसे झकझोर कर रख दिया था।
राजपूत वीरांगना किरण बाई सा की एक पेंटिंग जो अकबर की छाती पर उसके गले में खंजर के साथ उसके पैर पे लगी हुई है,जयपुर संग्राहलय में प्रदर्शित है | वह बिशेष रूप से बीकानेर और सामान्य रूप से राजस्थान में एक परिचित नाम है, लेकिन शायद ही देश भर में जाना जाता है | उसने मुग़ल शासक अकबर को तब अपमानित किया जब उसने उसके साथ दुर्व्यवहार करने की कोशिश की | अगर अकबर ने अपनी जीवन की भीख ना मांगी होती तो ,आज भारत का इतिहास बदल जाता!सीख: जब एक स्त्री अपने आत्मसम्मान के लिए उठ खड़ी होती है…
इतिहास के इस प्रसंग से यह सीख मिलती है कि जब कोई स्त्री अपने आत्मसम्मान की मांग करती है, तो वह किसी भी शक्ति, किसी भी सत्ता और किसी भी साम्राज्य को हिला सकती है।
आज के समाज में भी हमें किरण बाई सा जैसी नारी शक्ति की आवश्यकता है—जो अन्याय के खिलाफ उठ खड़ी हो, अपने आत्मसम्मान की रक्षा करे और समाज के लिए प्रेरणा बने।
आपको इस वीरांगना की कहानी से क्या प्रेरणा मिली? अपनी राय जरूर साझा करें!
Comments
Post a Comment